क्या खूब लिखा है किसीने - " मिल जाये तो मिटटी , खो जाये तो सोना ! "
जो मिल जाता है , उसका कोई मोल नहीं रहता
और जो खो जाता है , वो हमेशा याद आता है
शायद इसीलिए हीर-राँझा , लैला-मजनू की पहचान दुनिया में बनी
मिल जाते, तो क्या पता वक़्त के साथ उनका प्यार भी ऊब जाता, उनके नाम कही गुमनामी में बह जाते
इंसान का प्यार भी कैसा निराला !
प्यार वही तक चलता है, जहाँ तक मतलब निकलता है !
मुश्किल मोड़ आने पर, अपना रुख बद्दल लेता है
हरियाली में तो हर कोई साथ निभाता है
कसौटी प्यार की तब होती है जब सूखा आता है !
प्यार के भी कई रूप रंग और कई है उसकी परिभाषा ! उदाहरण :
जिस प्यार में चूर होकर शाहजहां ने ताजमहल बनवाया, उसी प्यार के वास्ते गरीब मजदूरों ने अपने बेशकीमती हाथ गवाये
कोई अपनी जिद्द को प्यार कहता है तो कोई अपनी हवस को
कोई मातृभूमि के प्यार में शहीद होता है , तो कोई प्यार के जूनून में क़त्ल करता है
कोई प्यार में सिर्फ समझौता करता है तो कोई प्यार के नाम पर सिर्फ दगा करता है
माँ का प्यार सिर्फ देना जानता है , तो माशूका का प्यार सिर्फ लेना जानता है
यूं तो प्यार इश्क मोहब्बत कहने को सब एक ही कहलाते है ,
पर इसको सही मायने में समझने का वक़्त किसके पास है? समझ भी पाए तो निभाने का साहस कौन रखता है?
सच्चा प्यार एक वही है दोस्तों जो किसी के प्रति शर्तरहित होता है
ऐसा प्यार तो सिर्फ किसी के प्रति अप्रतिम अपार करुणा होता है
और
वह केवल संत , गुरु,
फ़रिश्ते और भगवान् का होता है !
- डॉ रचना फाडिया
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